गेहूं के जवारे ( wheat grass ) रस से स्वास्थ्य और चिकित्सा की पद्धति
कैमिलोटेक कंपनी द्वारा गेहूं के जवारे ( wheat grass ) के रस से तैयार फ़ूड सप्लीमेंट स्वास्थ्य एवं चकित्सा के क्षेत्र में एक वरदान से कम नहीं है. गेहूं के जवारे का रस जो सदियों से हमारे धार्मिक विश्वाशो के साथ हमारी चिकित्सा पद्धति में शामिल है इसे कैमिलोटेक कंपनी के द्वारा वैज्ञानिक पद्धति से और अधिक परिष्कृत कर जीवन रक्षक के रूप में तैयार किया गया है. बयोक्लोरोफिल और जीटी प्लस क्लोरोफिल नाम से तैयार कंपनी के जीवन रक्षक उत्पाद हमारे सनातन विस्वाशों को और अधिक दृढ़ करते है. यहाँ पर जवारे रस पारम्परिक पद्धतियों को प्रस्तुत किया जाना आवश्यक है क्योंकि इससे कमिलोटेक उत्पाद पर आपका विशवास और अधिक मजबूत होगा -
धार्मिक एवं सामजिक मान्यताएं
जवारे के सन्दर्भ में भारत में विशेष धार्मिक विशवास है. यह विश्वास मध्य भारत में पुरातन काल से ही विद्यमान है. नवरात्रि में देवी की उपासना से जुड़ी अनेक मान्यताएं हैं उन्ही में से एक है नवरात्रि पर घर में जवारे लगाने की। 7 गमलों के अन्दर मिट्टी भरकर रोजाना बारी-बारी से थोड़े से अच्छी किस्म के गेंहू के दाने उनमें बो दें और इनके अन्दर रोजाना थोड़ा सा पानी डालते हैं. 10 दिन के बाद इसके पौधे 6 से 7 इंच के हो जाते हैं। नवरात्रि के अवसर पर इन जवारे के गमलों को सर पर रख कर जुलूस निकालते हैं. इस दौरान पर्यावरण को सवच्छ बनाए रखने पर विशेष बल दिया जाता है. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इस धार्मिक विश्वास के पीछे क्या कारण है ?
इसका प्रमुख कारण है: प्रकृति में ऐसी अमूल्य वनस्पतियाँ हैं जिनका सेवन सही तरीके किया जाए तो जीवनभर स्वस्थ और सुखी रह सकते हैं। ऐसा ही जवारे का रस है। वैज्ञानिकों द्वारा किए गए विश्लेषण से यह साबित हुआ है कि इनमें अन्य औषधियों और वनस्पतियों की तुलना में अधिक रोगनाशक और रोग प्रतिरोधात्मक गुण हैं। जवारे का रस दूध, घी, अंडा और अन्य पौष्टिक तत्वों की तुलना में ज्यादा शक्तिवर्धक है। यह विभिन्न रोगों को मिटाता भी है और बचाव भी करता है। इस पौधे के रस का नियमित समय और सही ढंग से सेवन करने से महारोगों से बच सकते हैं और अनिद्रा, त्वचा रोग, संधि वात, प्रदर रोग, बालों के रोग, पीलिया, जुकाम, अनीमिया, मोटापा, पथरी एवं कैंसर जैसे रोगों से बच सकते हैं और मिटा भी सकते हैं। प्राकृतिक चिकित्सकों का मानना है कि इस रस के सेवन से बवासीर, अस्थमा, एसिडीटी, कब्ज, लहू की कमी, गठिया के साथ-साथ बुढ़ापे की कमजोरी एवं बुढ़ापे को जल्दी आने से रोक सकते हैं। साथ-साथ शारीरिक सौंदर्य भी पा सकते हैं। जवारे के रस का चिकित्सक की देख-रेख में नियमित और सही ढंग से उपयोग करने से कैंसर जैसे रोग से छुटकारा मिलता है। इस रस में शरीर को स्वस्थ रखने के साथ-साथ उसमें शोधन करने की भी अद्भुत क्षमता है। प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में गेहूँ के जवारे के रस को ग्रीन ब्लड की उपमा दी गई है। क्योंकि मनुष्य के रक्त में पाए जाने वाले तत्व इस रस में भी पाए जाते हैं। इसीलिए तो उसके सही उपयोग से हम रोग मुक्त हो सकते हैं।
वैज्ञानिक तथ्य
वैज्ञानिकों की खोज के द्वारा ये बात साबित हो चुकी है कि गेंहू के जवारे का रस जीवन जीने की ताकत को बढ़ाता है जिससे व्यक्ति को आने वाले समय में कोई रोग होने के आसार नहीं होते। इसके अन्दर काफी सारे गुण होने के कारण इसकी किसी ओर वस्तु से तुलना नहीं की जा सकती। काफी जगहों पर गेंहू के जवारे के रस की तुलना अमृत के साथ भी की गई है। इसके खास तरह के गुणों के कारण ही इसको पूजा में ऊंचा स्थान दिया गया है। इसको रोगी को किसी भी हालत में दिया जा सकता है।
अमेरिकन डाक्टरों एवं वज्ञानिको द्वारा किए गए शोध: गेहूं के जवारे से कैंसर का उपचार
पिछली सदी में अमरीका की एक महिला डाक्टर एन. विगमोर ने गेहूं की शक्ति के सम्बन्ध में बहुत अनुसन्धान तथा अनेकानेक प्रयोग करके एक बड़ी पुस्तक लिखी है, जिनका नाम है Why Suffe? Answer…Wheat Grass Manna उन्होंने अनेकानेक असाध्य रोगियों को गेहूं के जवारे का रस देकर उनके कठिन से कठिन रोग अच्छे किये हैं। विगमोर के अनुसार संसार में ऐसा कोई रोग नहीं है जो इस रस के सेवन से अच्छा न हो सके। कैंसर के ऐसे बड़े-बड़े रोगी उन्होने अच्छे किये हैं, जिन्हें डाक्टरों ने असाध्य समझकर जवाब दे दिया था और जो मरणप्रायः अवस्था में अस्पताल से निकाल दिए गए थे। यह ऐसी अदभुत हितकर चीज है। उन्होंने इस साधारण से रस से अनेकानेक भगंदर, बवासीर, मधुमेह, गठियाबाय, पीलियाज्वर, दमा, खांसी वगैरह के पुराने से पुराने असाध्य रोगी अच्छे किये हैं। बुढ़ापे की कमजोरी दूर करने में तो यह रामबाण है। भयंकर फोड़ों और घावों पर इसकी लुगदी बाँधने से जल्दी लाभ होता है। यह भी कहते हैं कि अगर नियमित इस रस का सेवन किया जाए तो कैंसर की गाँठे तक गल जाती हैं। अनेक जीर्ण रोगों को गेहूँ के जवारे ठीक कर देते हैं। अमेरिका के अनेकानेक बड़े-बड़े डाक्टरों ने इस बात का समर्थन किया है। अनेक लोग इसका प्रयोग करके लाभ उठा रहे हैं।
पश्चिम में इनकी उपयोगिता की खोज 1930 में हुई। कृषि रसायनशास्त्री चार्ल्स एफ.शेनबेल के फार्म पर मुर्गियों को कोई जानलेवा बीमारी हो गई। सारे उपचार किए मगर सब व्यर्थ गए। शेनबेल ने व्हीट ग्रास को आजमाया। बीमार मुर्गियों को आहार में व्हीटग्रास अर्थात गेहूँ के जवारे दिए गए। आश्चर्य मुर्गियाँ उससे ठीक होने लगी और अंडे भी ज्यादा देने लगी। स्वस्थ मुर्गियों पर भी प्रयोग किया तो वे भी अंडे ज्यादा देने लगी। जवारों का बंडल मछलीघर याने एक्वेरियम में डाल दिया जाए तो उस पानी को ये साफ कर देते हैं। मछलियों की सेहत भी सुधर जाती है। फिर दो अमेरिकी कंपनियों ने इन पर काफी रिसर्च किया। मनुष्यों पर प्रयोग हुए। गेहूँ के जवारों के रस को परिष्कृत करके कैमीलोटेक ने बायो क्लोरोफिल नाम से उत्पाद निर्मित किया है।
कैमिलोटेक द्वारा गेहूं के जवारे से निर्मित जीवन रक्षक उत्पाद
गेहूं के जवारे को ग्रीन ब्लड कहा जाता है. इसका कारण है क्योंकि क्लोरोफिल जिसका रंग हरा होता है इसकी अणु संरचना रक्त की अणु संरचना के सामान होती है. इसी क्लोरोफिल के कारण पेड़ पौधों की पत्तिया हमेशा हरी रहती हैं. क्लोरोफिल का मानव शरीर पर गुणकारी प्रभाव पड़ता है यह बात न शिर्फ़ हमारी परम्परा में मान्य है बल्कि वज्ञानिक शोधों ने भी इसे पुष्ट किया है. इसे प्रयोग तौर पर सिद्ध करके भी दिखा दिया है. इन्ही पारंपरिक विश्वासों और वज्ञानिक विश्लेषणों के आधार पर अनेक परीक्षणों के बाद कैमीलोटेक कंपनी ने अपने बयोक्लोरोफिल नाम से जीवन रक्षक उत्पाद तैयार किए है. यह उत्पाद बिना किसी विपरीत प्रभाव के मानव शरीर को स्वास्थ्य और जीवन ऊर्जा प्रदान करता है.
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